‘सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां, जिंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहां’ मशहूर शायर ख्वाजा मीर दर्द की यह शायरी हर व्यक्ति को घूमने के लिए प्रेरित करती है. घूमना एक ऐसी चीज है जो अनुभवों के साथ-साथ व्यक्तित्व को निखारती है. ट्रैवलिंग से इंसान केवल नई जगह से रूबरू नहीं होता बल्कि नए लोग, नई भाषा, नए कल्चर और नए खानपान के बारे में भी जानता है. हाल ही में एक नई स्टडी सामने आई जो ट्रैवलिंग को एजिंग से जोड़ती है. स्टडी के अनुसार, जो लोग ट्रैवल करते हैं, वह लंबे समय तक यंग रहते हैं यानी उन्हें झुर्रियां देरी से निकलती हैं. सैर-सपाटा एजिंग को धीमा कर देता है.
ट्रैवल से स्किन टिश्यू होते हैं रिपेयर
ऑस्ट्रेलिया की एडिथ कोवान यूनिवर्सिटी के अनुसार, ट्रैवल से एजिंग की रफ्तार धीमी हो जाती है. रिसर्च के अनुसार व्यक्ति का नई जगह पर सोशल इंगेजमेंट, फिजिकल एक्टिविटी और नेचर के करीब होने से वह खुश और हेल्दी रहता है जिससे उनकी मेंटल हेल्थ और फिजिकल फिटनेस दुरुस्त होने लगती है. जब स्ट्रेस कम होता है तो मेटाबॉलिज्म बेहतर होने लगता है जिससे इम्यूनिटी बेहतर होती है. साथ ही शरीर में कुछ ऐसे हॉर्मोन्स रिलीज होने लगते हैं जो टिश्यू को रिपेयर और रीजनरेट करते हैं जिससे एजिंग धीमी रफ्तार से होती है.
नई चीजें एजिंग को रोकती हैं
मनोचिकित्सक प्रियंका श्रीवास्तव कहती हैं कि ट्रैवलिंग, स्ट्रेस और एजिंग का आपस में गहरा नाता है. जब कोई इंसान लगातार एक जैसा रूटीन फॉलो करता है तो वह बोर होने लगता और खुद की जिंदगी से निराश होकर तनाव लेने लगता है. लेकिन जब वही इंसान किसी नई जगह पर घूमने जाता है तो दिमाग नई चीजों को देखता है. दिमाग के लिए नई जगह एक नए टास्क की तरह होती है. नई चीजों से ब्रेन एक्टिव हो जाता है और न्यूरॉन्स अलग तरीके से काम करने लगते हैं. इस प्रोसेस को न्यूरोप्लास्टिसिटी कहा जाता है. इससे व्यक्ति का तनाव दूर होने लगता है. नेचर के पास जाने से बॉडी को ऑक्सीजन भी भरपूर मिलती है जिससे न्यूरॉन की फंक्शनिंग अच्छे से होती है. इसलिए जब कोई व्यक्ति तनाव में या डिप्रेशन में हो तो उसे जगह बदलने की सलाह दी जाती है. जब स्ट्रेस दूर होता है तो एजिंग भी दूर रहती है.
घूमने से इंसान खुश रहता है और ज्यादा क्रिएटिव बनता है (Image-Canva)
हैप्पी हॉर्मोन्स होते रिलीज
जनरल ऑफ ट्रैवल रिसर्च के अनुसार, ब्रेन हेल्थ के कुछ पिलर हैं, जो दिमाग को तनाव से दूर रखते हैं. वह है नींद, न्यूट्रिशन, स्ट्रेस मैनेजमेंट, एक्सरसाइज और सोशलाइजेशन. जब व्यक्ति अपनी रूटीन लाइफ से हटकर ट्रैवलिंग करता है तो इससे स्ट्रेस हॉर्मोन्स का लेवल घटता है और बॉडी में हैप्पी हॉर्मोन्स रिलीज होते हैं. इससे स्किन पर स्ट्रेस नहीं पड़ता और त्वचा का कोलेजन बरकरार रहता है.
ट्रैवलिंग से आती है अच्छी नींद
जब व्यक्ति अपने ऑफिस या बिजनेस के काम में उलझा होता है तो वर्क प्रेशर की वजह से ना ठीक से सो पाता है और ना ही ठीक तरीके से डाइट ले पाता है. लेकिन ट्रैवलिंग में इंसान फ्री होता है. वह उस नई जगह का लोकल ताजा पका खाना खाता है, जंक फूड या पैक्ड फूड से दूर रहता है, रात को समय से सोता है और नींद भी पूरी लेता है. अच्छा खाना और पूरी नींद स्किन की सेहत के लिए अच्छी होती है.
जितनी ज्यादा ट्रैवलिंग, उतनी अच्छी सेहत
एक रिसर्च में कहा गया कि हर इंसान को साल में एक बार ब्रेक लेकर घूमना जरूर चाहिए. लेकिन जो लोग लगातार ट्रैवल करते हैं, वह ज्यादा सेहतमंद रहते हैं. जरूरी नहीं यह ट्रिप कोई इंटरनेशनल हो. अगर व्यक्ति हर वीकेंड पर अपने आसपास के लोकल इलाके में भी घूम ले तो उसका दिमाग स्ट्रेस फ्री रहता है. ताइवान में मार्शफील्ड क्लिनिक की स्टडी के अनुसार जो लोग अपने घर से 120 किलोमीटर की ही दूरी पर घूमते हैं, वह बाकी लोगों के मुकाबले ज्यादा खुश रहते हैं. वहीं जो साल में 2 बार वेकेशन पर जाते हैं उन्हें डिप्रेशन, स्ट्रेस जैसे मेंटल डिसऑर्डर परेशान नहीं करते.
घूमने से मेंटल हेल्थ सुधरती है (Image-Canva)
क्यों होती है एजिंग
दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल में डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. कशिश कालरा कहते हैं कि अक्सर 30 साल की उम्र के बाद चेहरे पर झुर्रियां दिखने लगती है. लेकिन आजकल स्ट्रेस, खराब लाइफ स्टाइल, प्रदूषण और हॉर्मोन्स के बदलाव के कारण एजिंग जल्दी होने लगी है. दरअसल एक समय के बाद स्किन को यंग रखने वाला कोलेजन नाम का प्रोटीन फाइबर कम होने लगता है. इससे चेहरे की त्वचा ढीली पड़ने लगती है और फाइन लाइन्स यानी झुर्रियां नजर आने लगती हैं. एजिंग को रोका नहीं जा सकता लेकिन इसे धीमा जरूर किया जा सकता है. एजिंग को स्लो करने के लिए सनस्क्रीन का इस्तेमाल जरूरी है. खूब सारा पानी पीकर बॉडी को हाइड्रेट करें. स्किन को मॉइस्चराइज करें. 30 साल की उम्र के बाद डॉक्टर की सलाह पर रेटिनॉल लगाएं. कुछ महिलाएं एजिंग के असर को कम करने के लिए बोटॉक्स ट्रीटमेंट भी लेती हैं.
एजिंग बन चुका है फोबिया
बढ़ती उम्र का डर खासकर महिलाओं में फोबिया बनकर उभरा है. इसे ऐज फोबिया कहते हैं. उम्र की रफ्तार रोकने के लिए 70% महिलाएं एंटी एजिंग ट्रीटमेंट जल्दी लेना शुरू कर देती हैं. ऐज फोबिया की वजह से ही आजकल एंटी एजिंग प्रोडक्ट भी बाजार में खूब बिक रहे हैं. वहीं केमिकल पील, लेजर, स्किन लिफ्टिंग, थ्रेड लिफ्ट जैसे ट्रीटमेंट की भी डिमांड बढ़ी है. दरअसल महिलाएं हमेशा से अपनी लुक्स को लेकर सजग रही हैं. पहले के जमाने में महारानियां भी एजिंग को रोकने के लिए नए-नए तरीके अपनाती थीं. लेकिन अगर कोई हेल्दी तरीके से एजिंग को कम करना चाहता है और डैमेज स्किन सेल्स को रिपेयर करना चाहता है तो घूमने का प्लान बना ले.
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FIRST PUBLISHED : October 13, 2024, 12:47 IST