वैज्ञानिक कह रहे हैं कि इसकी खोज पृथ्वी के अस्तित्व के लिए आशा की किरण साबित हो सकती है क्योंकि एक दिन हमारा सूर्य अपने अंतिम समय में पहुंच जाएगा। यानी जब पृथ्वी हमेशा के लिए अंधकार में डूबने वाली होगी तो यहां पर बसेरा बसाने की उम्मीदें लगाई जा रही हैं। वैज्ञानिकों का यह भी अनुमान है कि पृथ्वी संभावित रूप से हर दिन आकार में बड़े हो रहे सूर्य द्वारा भस्म होने से बच सकती है। जिसकी वजह से बाहरी सौर मंडल में मानव के बसने की संभावनाएं खुल सकती हैं। उदाहरण के लिए बृहस्पति के आसपास यूरोपा, कैलिस्टो और गेनीमेड, या शनि के पास एन्सेलाडस जैसे चंद्रमा भविष्य की पीढ़ियों के लिए संभावित आश्रय स्थल बन सकते हैं।
व्हाइट ड्वार्फ (white dwarf) क्या है?
व्हाइट ड्वार्फ (white dwarf) दरअसल एक ऐसे तारे को कहते हैं जो अपने सारे ईंधन यानी न्यूक्लियर फ्यूल की खपत कर चुका है और अब बुझने की ओर बढ़ रहा है। इस स्थिति में इसकी बाहरी परतें खत्म हो चुकी होती हैं। इसी तरह हमारा सूरज भी एक दिन खत्म होते ईंधन के साथ लाल दैत्याकार गोले में बदल जाएगा और फिर सिकुड़ते हुए व्हाइट ड्वार्फ का रूप ले लेगा। इसका आकार कितना बढ़ेगा इसी पर आसपास के कई ग्रहों का भविष्य निर्भर करेगा। मतलब यह अपने आसपास के ग्रहों जैसे बुध, शुक्र आदि को निगल सकता है! तो क्या पृथ्वी भी इसकी चपेट में आएगी?
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया की ओर से की गई एक स्टडी Nature Astronomy में प्रकाशित की गई है। यह कहती है कि जैसे ही सूरज बहुत ज्यादा बड़ा आकार लेने लगेगा यह सौरमंडल के ग्रहों को इनकी मौजूदा कक्षा से दूर धकेलने लगेगा। इसी वजह पृथ्वी भी इससे और अधिक दूर खिसक जाएगी जिससे इसके बचने की संभावना बढ़ जाएगी। वैज्ञानिक कह रहे हैं कि कुछ और अरबों सालों तक पृथ्वी रहने लायक बनी रह सकती है। सूरज के हमेशा के लिए डूबने के समय इसकी क्या स्थिति होगी अभी इसका पक्का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
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