हजारीबाग. झारखंड की पहचान यहां के जंगल, हरियाली और वातावरण से होती है. जंगल ही यहां के ग्रामीण क्षेत्र में आय का प्रमुख साधन हैं. यहां के जंगलों में सखुआ के पेड़ बहुतायत में मिलते हैं. झारखंड का राजकीय वृक्ष साल है, जिसे सखुआ के नाम से भी जाना जाता है. सखुआ का पेड़ झारखंड की संस्कृति का एक हिस्सा है. साथ ही इसकी कई उपयोगिता भी है.
झारखंड के आदिवासी और गैर आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों में सखुआ का पौधा जीविकोपार्जन का एक जरिया है. जहां इसके पत्तों से पत्तल-पतली, टहनी को दातुन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. सखुआ के पेड़ों की उपयोगिता सबसे अधिक मध्य गर्मी से बरसात के समय तक रहती है. इस समय सखुआ के पौधों से फूल और इसके फल पक कर झड़ते हैं. जिसे ग्रामीण महिलाएं अहले सुबह बिनने जंगल चली जाती हैं. इसके फल को सरई फल कहा जाता है.
बहुत उपयोगी है सरई फल
सरई फल काफी उपयोगी माना जाता है, जिस कारण दूसरे राज्य के व्यापारी आकर यहां इसकी खरीदारी करते हैं. पर्यावरणविद् आकाश तिग्गा बताते हैं कि सरई फल से औषधि दवा बनती है. इसके फल से तेल निकाला जाता है, जिसका उपयोग खाने से लेकर साबुन बनाने तक में किया जाता है. अब भी आदिवासी क्षेत्रों में कई बीमारियों के लिए सरई फल का प्रयोग होता है. आदिवासी साल भर इसके फल को अलग-अलग तरीके से सेवन करते हैं.
इन दिनों हो रही अच्छी कमाई
इचाक के जंगलों में सरई बिनने आई अनीता देवी कहती हैं कि सरई फल पेड़ में उगने का वर्षों से इंतजार रहता है. फल आने के बाद कुछ महीनों के लिए आमदनी का एक अच्छा स्रोत बन जाता है. अभी रोजाना 20 से 25 किलो सरई चुन कर घर ले जाते हैं. फिर सुखाकर इसे व्यापारी को बेच देते हैं. इससे अच्छी आमदनी हो जाती है. गांव की अधिकांश महिलाएं सरई से कमाई कर रही हैं. अभी 10 से 15 रुपए प्रति किलो सरई फल बिक रहा है. खरीदार घर आकर इसे ले जाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : July 6, 2024, 17:46 IST
Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, एक्सपर्ट्स से की गई बातचीत के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं. इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें. Local-18 किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.