कोरोना की दोनों वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन के साइड इफैक्ट्स देखे गए हैं. भारत में 80 फीसदी जनसंख्या को कोविशील्ड जबकि बाकी को कोवैक्सीन लगी है.
Covaxin VS Covishield side effects: कोरोना से बचाव के लिए दुनिया भर में लगाई गई वैक्सीन कोविशील्ड के साइड इफैक्ट्स से होने वाली गंभीर बीमारियों का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब कोवैक्सीन के साइड इफैक्ट्स पर आई एक रिसर्च ने सनसनी मचा दी है. भारत में वैक्सीन को लेकर पैदा हो रही ज्यादा घबराहट और पैनिक की एक वजह ये भी है कि यहां कोवैक्सीन और कोविशील्ड दोनों ही वैक्सीन लोगों को लगाई गई हैं. जबकि कुछ लोगों ने तो उस दौरान प्रयोग के लिए दिए गए कोवैक्सीन और कोविशील्ड का कॉकटेल डोज भी लगवाया था.
कोविशील्ड में ये निकले साइड इफैक्ट्स
एक तरफ ब्रिटिश हाई कोर्ट मामला पहुंचने के बाद कोविशील्ड बनाने वाली एस्ट्रेजेनेका ने अपनी वैक्सीन की डोज को पूरी तरह वापस लेने का फैसला कर लिया था. जिसमें कंपनी ने खुद स्वीकारा था कि इस वैक्सीन को लेने के बाद लोगों में 4 से 6 हफ्ते के अंदर थ्राम्बोसिस और ब्लड क्लोटिंग (थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम) की परेशानी देखी गई. क्लोटिंग की वजह से हार्ट अटैक होने की भी संभावना जताई गई थी. लिहाजा इस वैक्सीन को लगवाने वालों में एक डर पैदा हो गया. जबकि कोवैक्सीन लगवाने वाले खुद को खुशनसीब मान रहे हैं.
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कोवैक्सीन में मिले ये साइड इफैक्ट्स
हालांकि अब हाल ही में कोवैक्सीन को लेकर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में हुए एक रिसर्च में वैक्सीन लेने वाले लोगों में वायरल अपर रेस्पेरेट्री ट्रैक इंफेक्शन्स से लेकर न्यू-ऑनसेट स्कीन एंड सबकुटैनियस डिसऑर्डर, नर्वस सिस्टम डिसऑर्डर यानी नसों से जुड़ी परेशानी, जनरल डिसऑर्डर और मुस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर यानी मांसपेशियों से जुड़ी परेशानी, आंखों की दिक्कत और पीरियड्स से जुड़ी परेशानी देखे जाने का दावा किया गया है.
ऐसे में एक बहस ये भी शुरू हो गई है कि कोवैक्सीन या कोविशील्ड कौन साबित हुआ है साइड इफैक्ट्स का बाप? आखिर किसी वैक्सीन के परिणाम ज्यादा खराब हो सकते हैं? इस पर जाने माने वायरोलॉजिस्ट और डॉ. अंबेडकर सेंटर फॉर बायोमेडिकल रिसर्च नई दिल्ली के डायरेक्टर प्रोफेसर सुनीत के सिंह ने अपनी राय दी है.
दोनों में से किसके साइड इफैक्ट्स हैं खतरनाक?
डॉ. सुनीत राय कहते हैं, ‘ कोविशील्ड और कोवैक्सीन के साइड इफैक्ट्स जिस तरह पूरी तरह अलग हैं, वैसे ही इनका निर्माण भी अलग पद्धतियों से हुआ है. पहले कोविशील्ड की बात करते हैं. यह एडिनोवायरस बेस्ड वैक्सीन थी, जो बायोटेक्नोलॉजी का नया टर्म है. इसमें एक्टिव स्पाइक प्रोटीन को वैक्सीन के माध्यम से शरीर में डाला जाता है और तब सार्स कोव 2 के खिलाफ एंटीबॉडीज बनती हैं. इसमें साइड इफैक्ट्स की संभावना अन्य वैक्सीन की तरह ही है लेकिन उससे भी ज्यादा एस्ट्रेजेनेका कंपनी ने ही इसके साइड इफैक्ट्स को खुद स्वीकार कर लिया था.
हालांकि फिर भी वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से और भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो मैंने तब भी यही कहा था कि जितने लोग वैक्सीनेटेड हुए हैं, उसके हिसाब से एस्ट्रेजेनेका के डेटा के अनुसार उस लिहाज से लाइफ थ्रेटनिंग थ्राम्बोसिस वाले मरीजों की संख्या बहुत कम थी. वहीं जिनमें साइड इफैक्ट देखे गए क्या उनमें ये भी देखा गया कि उनमें कोई कोमोरबिड नहीं था, किसी अन्य गंभीर बीमारी से ग्रस्त नहीं था. यह भी देखना चाहिए था. अब जबकि कोविशील्ड को लगे इतना समय निकल गया है, भारत के लोगों को इसका खतरा नहीं है. बाकी अपवाद किसी भी दवा में हो सकता है.
कोवैक्सीन में..
डॉ. सुनीत कहते हैं कि अब कोवैक्सीन की बात करते हैं. मेडिकली इसके जो भी साइड इफैक्ट्स बताए गए हैं वे लांग कोविड के साइड इफैक्ट्स ज्यादा दिखाई दे रहे हैं. कोवैक्सीन को लेकर दो पहलू हैं. पहला ये कि जिस तकनीक से यह बनाई गई है, उस तकनीक से बनाई गई कई वैक्सीन भारत में आज भी बच्चों और बड़ों को लगाई जा रही हैं. यह एक इनएक्टिवेटेड वैक्सीन है. इसमें मृत वायरस को शरीर के अंदर पहुंचाया जाता है जो संक्रमण करने में असमर्थ रहता है लेकिन उसके एंटीजन शरीर को रोग के प्रति एंटीबॉडीज बनाने के लिए प्रेरित करते हैं और बीमारी से बचाव करते हैं. अब चूंकि यह निष्क्रिय वायरस पर बनी वैक्सीन है तो इससे कोरोना या ऐसे किसी संक्रमण की गुंजाइश नहीं रहती.
दूसरा वैज्ञानिक तथ्य है कि जब कोवैक्सीन लोगों को लगाई गई तो क्या गारंटी है कि इसके बाद लोगों को ओमिक्रोन या कोरोना जेएन.1 जैसे वेरिएंट से संक्रमण नहीं हुआ होगा. जबकि भारत की बहुत बड़ी आबादी वैक्सीन लेने के बाद भी संक्रमित हुई, क्योंकि ये सभी वैक्सीन संक्रमण को नहीं रोकतीं, फैटलिटी को रोकती हैं. संक्रमण तो वैक्सीन के बाद भी हो सकता है.
ऐसे में तथ्य ये है कि क्या गारंटी है कि जो भी साइड इफैक्ट्स रिसर्च स्टडी में सामने आए हैं वे वैक्सीन के ही हैं, कोमोरबिड कंडीशन या सार्स कोव के बार बार संक्रमण की वजह से लांग कोविड के नहीं हैं. क्या ऐसा कोई रिकॉर्ड है कि जो लोग रिसर्च में शामिल हुए उन्हें वैक्सीन के बाद कोरोना नहीं हुआ?
डॉ. सुनीत कहते हैं कि मैंने कोविशील्ड के समय भी कहा था और अब कोवैक्सीन को लेकर भी यही बात है कि कोरोना ऐसी बीमारी रहा है जिसकी कई लहरें आईं, जिसके कई इफैक्ट्स रहे ऐसे में किसी भी साइड इफैक्ट को बिना अन्य पहलुओं को देखे सिर्फ वैक्सीन का बता देना ठीक नहीं है.
जहां तक कोवैक्सीन के साइड इफैक्ट्स की बात है तो ये लांग कोविड के इफैक्ट्स की तरह हैं. प्रथम द्रष्टया ये गंभीर नहीं हैं लेकिन कोई भी बीमारी कभी भी गंभीर हो सकती है और लाइफ क्वालिटी को प्रभावित कर सकती है. फिर भी घबराने की जरूरत नहीं है.
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FIRST PUBLISHED : May 18, 2024, 21:09 IST