कालमेघ… टाइफाइड, मलेरिया, बुखार का काल, बीमार होने पर आदिवासी पीते हैं इस जंगली पौधे का रस

पलामू: बारिश का मौसम चल रहा है. ऐसे में बीमारियों ने धावा बोल दिया है. लगभग घरों में लोग बुखार-जुखाम से पीड़ि हैं. वहीं, मलेरिया और टाइफाइड के केस भी बढ़ रहे हैं. कई बार लंबे समय तक बुखार में होना गंभीर बीमारी का संकेत होता है. ऐसे में तमाम लोग डॉक्टर के पास भागते हैं. लेकिन, झारखंड के आदिवासी ऐसी स्थिति में कुछ अलग करते हैं. वे जंगल में मिलने वाले एक पौधे का इस्तेमाल करते हैं और बुखार से निजात पा जाते हैं.

जी हां, यह कमाल जंगली इलाके में मिलने वाले काल मेघ नामक पौधे का है, जिसे देहाती भाषा में चिरायता भी कहा जाता है. ये बुखार, टाइफाइड, मलेरिया जैसी बीमारियों को ठीक करने में कारगर माना गया है. आदिवासी लंबे समय से जड़ी बूटी का प्रयोग कर गंभीर से गंभीर बीमारी को ठीक करते आए हैं. पलामू निवासी नीलम देवी ने बताया कि हर तरह के उपचार के लिए उन्होंने अपने खेत में जड़ी-बूटी लगाई है. इसके पौधे जंगल से लेकर आती हैं.

तीन दिन में मिलेगा आराम
नीलम देवी ने दावा किया कि काल मेघ नामक इस पौधे के इस्तेमाल से किसी भी तरह के बुखार को ठीक किया जा सकता है. इसे स्थानीय भाषा में चिरायता भी कहा जाता है. इसका इस्तेमाल मलेरिया, टाइफाइड, काला बुखार और लंबे समय से बुखार है तो करना चाहिए, जिससे तीन दिन में बुखार बेअसर हो जाता है.

ऐसे करें इस्तेमाल
आगे बताया कि इसका इस्तेमाल करने के लिए सुबह-सुबह कालमेघ पौधे के पत्ते को सबसे पहले पीसा जाता है. इसके बाद रोगी को खाली पेट पिला दिया जाता है. लगातार तीन दिनों तक इसका इस्तेमाल करने से किसी भी तरह का बुखार ठीक हो जाता है. बताया कि इसके पत्ते में इतने गुण होते हैं जो वर्षों पुराने बुखार को भी ठीक कर देते हैं.

(Disclaimer: यह खबर आदिवासियों की मान्यताओं पर आधारित है. Local 18 इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी तरह के बुखार या बीमारी के लिए यथाशीघ्र नजदीकी अस्पताल पहुंचाना चाहिए.)

Tags: Health benefit, Local18, Palamu news, Viral Fever

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